०६ नोव्हेंबर, २०१५

बंदिश

बूँद बूँद जो बरस जात री
रैन भिगोके कारी,
रोम रोम अब तरस जात री
चैन न बिन तेहारी..


घननन गरजत आयी बदरी
रितु बरखा लायी री,
अखियन पी की प्यास लगी री
बीती रतिया सारी..



कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा