११ सप्टेंबर, २०१५

बारिश

गाड़ी रुकी हुई है एक जगह पर
मूसलाधार बारिश जो हो रही है..

खिड़की की चौखटसे बाहर गिरती
मोटी मोटीसी बूँदे
जुदाई सही नही जा रही इनसे शायद
बेताबी से गले पड़ रही है ज़मीं के
और बिखर रही है मोतियों की तरह
ये एक मोती गिरा
ये दूसरा
ये तीसरा...

'मोती बिखर चुके है जानू,
धागा तोड़नेका वक़्त आया है'
'इसे कैसे तोड़ू?
इसीने तो जोड़ा था'...

'यही मोती है जानू
जो हमारी जिंदगी सजाएँगे'
'ये कभी टूट गये तो?'
'धागा तो क़ायम है
नये मोती जोड़ देता है'...

'धागा जोड़ देता है नये मोतियों को
कभी तुम्ही ने कहा था'
'सीले धागे खुद कमज़ोर होते है जानू
उनसे जोड़ने की उम्मीदे नही होती'...

कोई बता दो इन बूँदों को
सीली है वो
बेताबी से गले पड़ रही है ज़मीं के
पर बिखर रही है मोतियों की तरह

गाड़ी रुकी हुई है एक जगह पर
मूसलाधार बारिश जो हो रही है..

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा