मीलों नही आहटें कोई, बस तनहाई का आलम है
यूँ तो मुसल्सल चलते रहें, पलकोंके किनारे मगर नम है
ज़िंदगियाँ आशिकानी थी वो, एक धागेमें जो पिरोयी थी
ज़िंदगी आजभी कायम है, साँसों की हरारत ज़रा कम है
दिन आँखोमें गुजर गये, रातें ख्वाबोंमें बीत गयी
कुछ यादें सरहाने रह गयी, लम्होंके सिरे मगर गुम है
उस वक़्त की छीटें पड़ती है, आजभी जब दिल पे कभी
कुछ पल वो शोले बुझते जिनमे, बूँद बूँद पिघले हम है
यही सफ़रकी फ़ितरत है, सब अपनी अपनी राह चुने
दो जहाँ तक़सीम हुए जब, उस मोड़पे आने का गम है
यूँ तो मुसल्सल चलते रहें, पलकोंके किनारे मगर नम है
ज़िंदगियाँ आशिकानी थी वो, एक धागेमें जो पिरोयी थी
ज़िंदगी आजभी कायम है, साँसों की हरारत ज़रा कम है
दिन आँखोमें गुजर गये, रातें ख्वाबोंमें बीत गयी
कुछ यादें सरहाने रह गयी, लम्होंके सिरे मगर गुम है
उस वक़्त की छीटें पड़ती है, आजभी जब दिल पे कभी
कुछ पल वो शोले बुझते जिनमे, बूँद बूँद पिघले हम है
यही सफ़रकी फ़ितरत है, सब अपनी अपनी राह चुने
दो जहाँ तक़सीम हुए जब, उस मोड़पे आने का गम है
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